मेरी पत्नी....

story of one person who is talking with his female friend about his wife.

मेरी पत्नी....


वो मेरे काफी अच्छे दोस्त थे, कई बार काम के सिलसिले में मेरी उनसे बातचीत होती थी. नाम था मनमोहन मेहरा. 2017 की बात है, एक दिन उनका फोन मेरे पास आया, “अर्चना फ्री हो, कुछ जरूरी बात करना है.” वैसे जब भी वो फोन करते तो बड़ी गर्मजोशी से हाल-चाल पूछते थे, लेकिन इस बार उनकी आवाज़ जरा बैठी हुई थी. मैंने उनकी परेशानी भांप ली और जनना चाहा कि आखिर कौन-सी बात उन्हें तकलीफ दे रही है. “नहीं...फोन पर नहीं, आपके पास समय हो तो मिलना चाहता हूं”. हालांकि उस दिन मुझे सांस लेने तक की फुर्सत नहीं थी पर परेशानी उनकी आवाज से साफ झलक रही थी. मैंने शाम को ही उन्हें ऑफिस आने को कहा.

शाम होते-होते मैं अपने काम में बिजी हो गई, लेकिन तभी मुझे याद आया कि मिस्टर मेहरा आने वाले थे. छह बजे मिलने की बात हुई थी, साढ़े छह बजे तक वो नहीं आए. अब घड़ी में सात बज रहे थे. मैंने उन्हें फोन करना बेहतर समझा. फोन पर उन्होंने ये कहकर टाल दिया कि “कुछ काम था, पर अब नहीं है.” मैंने भी ठीक है कहकर फोन रख दिया. देर रात उनका फिर फोन आया और उसी बैठी हुई आवाज में उन्होंने बात की, “सॉरी अर्चना, मैं नहीं आ सका, दरअसल बात ऐसी है...” वो चुप हो गए.

उस समय न जाने क्या मेरे दिमाग में आया और मैंने कह दिया- "आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं!"

बस मेरा ये बोलना था और उनके सब्र का बांध टूट गया, उनकी आवाज और भारी हो गई थी, “शायद मेरी वाइफ... वो किसी और के साथ...”

मैं समझ गई, उन्हें सिर्फ इतना कह पाई- "आप चिंता न करें, हो सकता है कि ये आपका वहम हो."

हां, आप सोच रहे होंगे कि क्या कोई डिटेक्टिव भी ये बोल सकता है, मसलन यहीं तो हमारा बिजनेस है, पर यकीन मानिए हम भी किसी का घर टूटता देख खुश नहीं होते.

अगले दिन मैं ऑफिस में काम कर रही थी, तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया. एक आदमी अंदर आया. लगभग 35 साल का शख्स, मंहगा सूट, चमचमाते जूते, चेहरे पर काले रंग का स्पेक्स पहने हुए, जैल लगे बाल और ट्रिम्ड शेव, हाथ में राडो की घड़ी. वो मिस्टर मेहरा थे. आइए
मिस्टर मेहरा, हाऊ आर यू- मैंने कहा. जवाब में एक झूठी मुस्कुराहट दे दी. वो ज्यादा कुछ नहीं कह पाए बस मेरी टेबल पर एक लिफाफा रख दिया और कहां कि “देख लीजिए”
आपकी पत्नी का नाम ?- मैंने पूछा

                      सुप्रिया......

नाम लेते ऐसा लगा कि उनका दिल बैठ गया हो. लिफाफे में उनकी वाइफ का फोटो और कुछ जरूरी इनफोर्मेशन थी. इसे पढ़कर पता चला कि उनकी पत्नी दिल्ली हाईकोर्ट की नामी वकील हैं. मेरा एक बार उनसे मिलना हुआ था पर उनके बारे में ज्यादा नहीं जानती थी. जब ऐसे क्लाइंट आते हैं तो यकीन मानिए दिल कहीं न कहीं ये दुआ कर रहा होता है कि कुछ बुरा न हो.

पहले दिन उनकी वाइफ का पीछा किया गया...

सुप्रिया यानी मिसेज मेहरा. लंबी, गोरी, आकर्षक महिला. रेशम से बाल, सलीके से साड़ी पहने हुए, आंखों पर सनग्लासेज. उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता की उनकी उम्र 34 साल होगी.

दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर मेरी टीम खड़ी रही पर कुछ हाथ न लगा. ऐसे ही दूसरा, फिर तीसरा, चौथा और ऐसा करके एक हफ्ता निकल गया. रोज एक ही समय पर ड्राइवर उन्हें गेट नंबर 1 पर छोड़ता और एक निश्चित समय पर वो बाहर आकर गाड़ी में घर लौट आतीं. बावजूद इसके हमने तहकीकात नहीं छोड़ी.

मैंने मिस्टर मेहरा को फोन किया और कहा- शायद ऐसा कुछ नहीं है, वो सिर्फ कोर्ट जाती हैं और फिर घर. कुछ दिन और देखते हैं.

एक दिन मेरी टीम कोर्ट के बाहर सुप्रिया पर नजर रखे हुए थी तभी मेरा दिमाग दौड़ा और एक साथी को उनके साथ ही कोर्ट के अंदर दाखिल होने को कहा. तब वो जानने को मिला, जिसके लिए हम इतने दिन से धूप में खड़े अपना खून उबाल रहे थे.

वो रोज की तरह गेट नंबर 1 से अंदर गईं और गेट नंबर 3-4 से बाहर निकलकर एक लाल रंग की ऑल्टो में बैठकर निकल गईं. सब इतनी जल्दी हुआ कि मेरे साथी को गाड़ी का पीछा करने का मौका ही नहीं मिला, पर इतना साफ हो गया था कि कुछ तो था, जिसे मिसेज मेहरा छुपा रही हैं.

अगले दिन हम पूरी तैयारी के साथ गए. दो साथी आगे के गेट पर दो साथी पीछे के गेट पर, साथ ही दो गाड़ियां भी थीं. मैंने देखा कि रोज ही की तरह मिसेज मेहरा अपनी गाड़ी से उतरती हैं और गेट के अंदर दाखिल होती हैं. इसके बाद कोर्ट के अंदर ना जाकर पीछे के गेट से बाहर निकल जाती हैं. ये वही गाड़ी थी. उनके निकलते ही मेरे साथियों ने उनका पीछा किया. गाड़ी दिल्ली बॉर्डर क्रॉस करके नोएडा पहुंची.

दो लोग गाड़ी से उतरे, मिसेज मेहरा के साथ एक लड़का था. लड़के की उम्र मुश्किल से 26-27 साल होगी. जींस-टीशर्ट पहने, दिखने में ठीक-ठाक, लंबा कद, गेहुंआ रंग और चेहरे पर अजीब सी बैचेनी.

एक पुरानी सी बिल्डिंग, जिसमें लिफ्ट भी नहीं थी, दोनों इतनी तेजी से सीढियां चढ़ते हैं मानो किसी से छिप रहे हो. पांचवी मंजिल का फ्लैट नं 503 में दोनों दाखिल होते हैं और गेट बंद हो जाता है.

मुझे फोन पर पूरी जानकारी दी गई. मैं हाईकोर्ट के बाहर उनकी गाड़ी के पास ही रूकी रही. शाम को मिसेस मेहरा ठीक उसी समय पर गाड़ी में आकर बैठ गई.

 जिस लड़के पर वह सबकुछ लुटा चुकी थी, वो असल में फ्रॉड था

मिस्टर मेहरा एक जाने-माने बिजनेसमैन हैं, जिनका काम के सिलसिले में अक्सर फॉरेन जाना लगा रहता है. मुझे पता लगा कि मिस्टर मेहरा किसी काम से 5 दिन के लिए अगले हफ्ते दुबई जा रहे हैं. ये वो वक्त था कि जब मिसेज मेहरा आजादी का फायदा उठा सकती थीं. हम पूरी तरह से अलर्ट थे.

तफ्तीश कर उस लड़के बारे में पता लगाया गया. पड़ोसी लेकर फेसबुक तक, हर जगह जहां थोड़ी भी जानकारी मिल सकती थी, ली गई. उसका नाम भरत (नाम परिवर्तित), उम्र 27 साल, पार्ट टाइम मॉडलिंग करता है, कुछ ही समय पहले कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ी है. मुरादाबाद से है और नोएडा में फ्लैट लेकर रहता है.

अगले दिन मिसेज मेहरा कुछ ज्यादा सजी-धजी थीं. उनके हाथ में रोज की तुलना में ज्यादा भारी बैग था. हमें पता था कि वो पीछे के गेट से निकल जाएंगी, इसलिए मैं आज पीछे के गेट पर ही खड़ी थी. वहीं, लाल रंगकी ऑल्टो वो उसमें बैठीं और निकल पड़ीं. पर बाकी दिनों की तरह आज उनका रूट सेम नहीं था. उनका पीछा करते हुए पाया गया कि मिसेज मेहरा के साथ भरत नहीं कोई और लड़का था. कश्मीरी गेट होते हुए कार शहर के बाहर निकल गई. वजीराबाद फ्लाईऑवर के पास गाड़ी जाकर रूकी, जहां एक काले रंग की महेन्द्रा एक्सयूवी गाड़ी खड़ी थी. मिसेज मेहरा ऑल्टो से उतर कर झटपट उस कार में बैठ गई और कार तेजी से आगे निकल गई. हमारी गाड़ी में पैट्रोल कम था पर ये मौका हाथ से जाने देना बेवकूफी थी. मैं और मेरे एक साथी ने बड़ी मुश्किल से उनकी कार का पीछा किया. कार हाइवे पर निकल गई.

पानीपत के नजदीक कुछ ही देर में पेट्रोल की सुई ने रेड अलर्ट दे दिया. किस्मत थी कि दस मिनट के अंदर उनकी कार पैट्रोल पंप पर रूकी, मिसेज मेहरा वॉशरूम यूज करने गईं. गाड़ी में भरत ही था. मैंने सोचा कि पैट्रोल भरवा लिया जाए, लेकिन उनके शक करने का रिस्क सिर पर था. दस मिनट बाद मिसेज मेहरा बाथरूम के बाहर निकली एक दम बदली हुई. घुटने से ऊपर तक का ब्लैक ड्रेस, पैरों में ऊंची एड़ी की सेंडल और मुंह को स्कार्फ से ढाके हुए. उनके निकलते ही पैट्रोल भरवाने के लिए गाड़ी निकाली, लगा इतनी देर में कितना दूर निकलेंगे, हम पीछा कर ही लेंगे.

पैट्रोल भरवा गाड़ी के हाइवे पर चढ़ाई पर वो दिखे नहीं. इतने अच्छे मौके को हाथ से निकल जाने का डर सताने लगा. गाड़ी की स्पीड बढ़ाई और मुझे याद नहीं कि उनको ढूंढने के दौरान स्पीड 150 से नींचे आई हो. हवा को चीरते हुए हाइवे पर भागती गाड़ी, आस-पास के लोगों को बचाने पर तेज ब्रेक की आवाज “उ हू हू हू हू..” और फिर स्पीड पकड़ने की “रूम... रूम...रूरूरू.....रू...”. फिल्मों में अक्सर ऐसे शॉट बैकग्राउंड म्यूजिक के साथ चलते हैं. आखिर 20 मिनट के बाद उनकी कार नजर ही गई.. अगले चार घंटों में पीछा करते हुए हम कसौली पहुंचे.

कार को कसौली के फोर स्टार होटल के बाहर लगाया और दोनों अंदर चले गए. हम कार से उतरे तो ठंड से कपकपी छूट गई. दिल्ली की गर्मी के हिसाब से पहने हुए कपड़े कसौली में कहां साथ देते. होटल के अंदर जाने पर रूम अवेलेबिलीटी चैक की गई पर कोई रूम खाली नहीं था.

हम बाहर आकर कार में बैठे और सोचने लगे कि आखिर क्या किया जाए. शाम हो चुकी थी, ठंड बढ़ने लगी थी. कार को मेरे साथी के साथ बाहर ही छोड़ दिया गया. फोर स्टार होटल में एक लड़की को घूमता देख किसी को शक नहीं हुआ. पर तकलीफ ये थी कि मेरे पास गर्म कपड़े नहीं थे और सुबह की चाय के अलावा पेट में कुछ गया नहीं था. कार में बैठकर रात बिताई जा सकती थी, लेकिन शातिर दिमाग मिसेज मेहरा के केस में किसी भी तरह का रिस्क लेना बेवकूफी थी. रात गार्डन में, जहां से उनके रूम की खिड़की दिखती थी, बैठकर बिताने का फैसला किया. रात के 1 बजे थे और ठंड से मेरा शरीर नीला पड़ गया था. इसी बीच हॉटल स्टाफ से कोई आया और मैंने फोन पर बात करने की एक्टिंग की. मुझे बिजी देखकर वो भी चला गया. देर रात 3 बजे के बाद उनके रूम की लाइट बंद हुई.

मेरी रात गार्डन में लगे एक लैंप के सहारे कटी. आमतौर पर कोई उसे हाथ लगाता से उंगली जल सकती थी पर इस कड़ाके की ठंड में वो थोड़ा ही सही, आराम दे रही थी. सुबह तक मेरे शरीर ने जवाब दे दिया था. मुझे तेज बुखार था. सवेरे लगभग 9 बजे मिसेज मेहरा और भरत गार्डन में ब्रेकफास्ट के लिए आएं. ये समय था सबूत जुटाने का. उनकी तस्वीरें ली गई. इसी बीच हॉटल में जैक-जुगाड़ के बाद हाउस कीपिंग से बात हो पाई जो उस रूम को सर्विस दे रहा था. अगले सबूत के तौर पर कमरे में स्कॉच, कैंडल्स, फ्लावर्स और सबसे अहम कॉन्डम मिला (सबूत ढूंढने के लिए डस्टबिन तक छानना पड़ता है). इसी बीच मिस्टर मेहरा का कॉल आ गया.

                            अर्चना, काम कहां तक पहुंचा?

बस चल रहा है मिस्टर मेहरा- मैंने कहा

मेरे दिमाग में अब भी कुछ चल रहा था, मैं पूरी तरह श्योर होना चाहती थी. मैंने उन्हें अपनी वाइफ को फोन करने के लिए कहा.

फोन कॉन्फ्रेंस पर था, उनकी वाइफ ने दो घंटी में ही फोन उठा लिया...

हैलो डार्लिंग... – मिसेस मेहरा बोलीं

“सुप्रिया... कैसी हो, कहां हो अभी?”

मैं... मैं तो रिंकी के घर हूं (सुप्रिया की फैमली फैंड). कल पार्टी थी तो यहीं रूक गई. क्यों पूछा ? – मिसेज मेहरा बोलीं

“कुछ नहीं, कुछ पेपर्स रखें थे स्टडी में उनसे डीटेल लेनी थी...”

अच्छा, कब आ रहे हैं आप? मिसेस मेहरा बोलीं

“मैं कल आ जाउंगा...”

इतनी जल्दी… (सुप्रिया घबरा गई) मेरा मतलब... पांच दिन का टूर था ना- मिसेस मेहरा बोलीं

“हां काम जल्दी खत्म हो गया”

मिसेज मेहरा का प्लान ही चौपट हो गया. आधे घंटे के भीतर वो और भरत वहां से रवाना हो गए.

इस बीच हमने मिसेज की कुछ वीडियोज़ भी बनाईं.

दो दिन के बाद मिस्टर मेहरा ऑफिस आए. वे नजरे नहीं मिला पा रहे थे. मैंने उनके हाथ में रिपोर्ट पकड़ाई और वो बिना कुछ कहे मेरी फीस देकर चले गए.



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