पांचाली

पांचाली


                    रूपाली दिल्ली के एक  नामी कॉलेज में स्नातक फाइनल ईयर में पढ़ती है। उसके साथ ही आशीष भी पढ़ता है। दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे।

                    रूपाली तो आशीष को मन ही मन अपना जीवन साथी भी बनाने को सोच चुकी थी। वह पढ़ाई खत्म करने के बाद अपने दिल की बात आशीष को बताने वाली थी।

                   उधर आशीष रूपाली से प्यार का नाटक करता था। वह तो सिर्फ़ उसके जिस्म को पाना चाहता था। उसके नजरों में प्यार का कोई मोल नहीं था। वह तो लड़की को सिर्फ सम्भोग की वस्तु समझता था।

                   आशीष तथा उसके सभी दोस्तों का सोच बचपन से ही सबसे एकदम अलग था। सभी स्त्री को सिर्फ भोग विलास की वस्तु तो समझते ही थे, सभी अपनी अपनी बीबी को आपस में बदलकर सोने का एक दूसरे से वादा भी कर चूके थे।

              आशीष के पांच दोस्त थे, महेश, दिनेश, पवन और राजीव। इन सभी का ख्यालात एक जैसे ही थे। स्त्री को भोग विलास की वस्तु समझने वाले सभी दोस्तों ने आपसी सहमति से ही अपनी अपनी पत्नी को आपस में अदला बदली कर उसके साथ रात बिताने का प्रण लिया था। सिर्फ सुहागरात जिसके साथ किसी लड़की की शादी होगी वह मनाएगा। उसके बाद सभी दोस्त उसके साथ संबंध बनाने के लिए वादे के अनुसार स्वतंत थे।

               इधर रूपाली के कॉलेज की पढ़ाई जैसे ही खत्म होती है, वह एक दिन आशीष को अपने दिल की बात बता देती है। 

            सुन आशीष भी उसे अपने दोस्तों के बीच में लिया गया प्रण वाली बात बता देता है। वह या उसके सभी दोस्त किसी लड़की को अंधेरे में रखकर शादी नहीं करना चाहता था। 

                सुन रुपाली आशीष एवम उसके दोस्तों की घिनौनी सोच पर दंग रह जाती है। वह उसे भला बुरा कहकर उससे सदा के लिए रिश्ता तोड़ लेती है।

              रूपाली का घर कानपुर में था। वह सिर्फ दिल्ली में पढ़ाई करने के लिए हॉस्टल में रहती थी।

                  रुपाली के परिवार में उसके पिता शियाराम सिंह एवम बड़ी बहन रूपम थी। शियाराम सिंह पहले सरकारी नौकरी करते थे। मगर रिटायर्ड करने के बाद वो अब घर पर ही रहते थे। रूपम भी दिल्ली के उसी कॉलेज से स्नातक पास करने के बाद अब घर पर ही रहकर अपने पिता की सेवा करती थी, और पास के ही एक प्राईवेट स्कूल में पढ़ाती थी।  रुपाली की मां करीब 10 साल पहले ही मर गई थी। तब से उसके पिता ही दोनों बहनों को मां बाप का प्यार देकर लालन पालन कर रहे थे।

              आशीष गुड़गांव का रहने वाला था। उसके पिता मनोहर सिंह एक बड़े बिजनेस मैन थे। मां शीला सिंह घरेलू महिला थी। आशीष की एक बड़ी बहन थी रागिनी। वह बहुत ही मॉडर्न ख्यालों की थी। इसीलिए उसकी अपने पति से नहीं पटती थी। और अब वह अपने पति को छोड़ कर मायके में ही रहती थी।

             आशीष के सभी दोस्त भी गुड़गांव में ही रहते थे। महेश एक अमीर बाप का बिगड़ैल अय्याश बेटा था, तो दिनेश एक प्राईवेट कंपनी में मैनेजर था। पवन का रेडिमेट कपड़े का दुकान था। पांचवा साथी राजीव गुड़गांव के ही एक थाने में दारोगा था। सभी था तो अलग अलग पेशे में मगर सभी एक नंबर के पक्के दोस्त थे। इसका मुख्य कारण शायद सभी का एक जैसा मिलता विचार ही था। 

               रूपाली कॉलेज की पढ़ाई खत्म करने के बाद हॉस्टल छोड़कर दिल्ली में ही रहकर नौकरी के लिए परीक्षा और इंटरव्यू देने लगती है। वह आशीष को भूल कर अब नौकरी ढूंढने में लग गई थी।

               उधर गुड़गांव में आशीष की शादी के लिए उसके घर रुपाली की बहन रूपम का रिश्ता आता है। रुपाली के मामा आशीष के पिता के मित्र थे। वही रूपम की शादी आशीष से कराने का प्रस्ताव लाए थे। सभी पहले लड़की देखने की योजना बनाते हैं। 

               अगले ही दिन आशीष अपने पांचों दोस्तों, मां एवम बहन के साथ रूपम को देखने के लिए कानपुर चल पड़ता है। 

               पांचों दोस्तों में से अगर किसी का भी लड़की देखना होता था तो सभी साथ ही देखने जाते थे।

               रूपम पढ़ी लिखी, सुन्दर शुशील तो थी ही सभी को वह पसंद आ जाती है। 

               रूपम के पिता अपनी बेटी के लिए एक बड़े घर में रिश्ता ठीक होता देख मन ही मन बहुत खुश हो जाते हैं। उनका एक अरमान आज पुरा होने जा रहा था।

               उसी दिन रुपाली का दिल्ली के एक बड़े कंपनी में इंटरव्यू था, इसलिए वह अपने घर कानपूर नहीं आई थी।

              अंत में आशीष रूपम से अकेले मिलने के बहाने उसे एक कमरे में लाकर अपने दोस्तों के साथ रात बिताने वाली शर्त बता देता है। सुनते ही रूपम तुरंत शादी करने से मना कर देती है। रूपम क्या, ऐसी शर्त सुनकर कोई भी लड़की शादी को तैयार नहीं होती।

               रूपम के शादी नहीं करने के फैसला से उसके पिता को बहुत दुख होता है। वे गुस्से में अपनी जवान बेटी को बहुत भला बुरा कहते हैं।

               मगर बेचारी रूपम अपने पिता को क्या बताती। वह अपने पिता के कड़वी बातों को सुनकर सिर्फ खून का घूंट पीकर रह जाती है। उसे रोना तो बहुत आ रहा था, पर वह रो भी नहीं पा रही है। ऐसे में उसे अपनी छोटी बहन रुपाली की बहुत याद आने लगती है।

               उधर आशीष एवम उसके सभी दोस्त एक बार फिर से शादी नहीं होने के कारण उदास हो जाते हैं। अभी तक सभी को 10 - 15 लड़कियों ने नकार दिया था। सभी रिश्ता इन पांचों दोस्तों के लिए गए प्रण के कारण ही टूट जाता था। मगर ये सभी कमिने दोस्त इल्जाम उलटे लड़की पर ही लगा देते थे।

               रूपम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

               रूपाली को जैसे ही अपनी बड़ी बहन रूपम द्वारा शादी से इंकार करने की खबर मिलती है, वह तुरंत भागी भागी कानपूर आ जाती है। 

               कानपुर आकर उसे जब रूपम से सच्चाई का पता चलता है तो सबसे पहले उसके जेहन में आशीष का नाम ही आता है। वह तुरंत रूपम को अपने मोबाईल में से आशीष का फोटो दिखाकर अपनी शंका को यकीन में बदल लेती है। रूपम फोटो देखते ही पहचान लेती है कि उसे देखने गुड़गांव से जो लड़का आया था, वह यही था। साथ ही वह रुपाली को उसके बाकि के दोस्तों के बारे में भी बताती है।

              पुरी बात सुनकर रूपाली मन ही मन आशीष एवम उसके दोस्तों को सबक सिखाने को ठान लेती है।

              रुपाली मन में अपनी और अपनी बहन की बदनामी का बदला लेने का दृढ़ निश्चय करके अगले ही दिन वापस दिल्ली आ जाती है।

              रुपाली के साथ ही कॉलेज में एक लड़का अनिकेत भी पढ़ता था। वह मन ही मन रुपाली को बहुत प्यार करता था। मगर वह कभी कह नहीं पाया था। वह गरीब घर से था इसलिए शायद कहने से डरता था।

              रूपाली जब अपने घर कानपुर से दिल्ली आकर जैसे ही रेलवे स्टेशन से बाहर निकलती है कि उसे अनिकेत मिल जाता है। पैसे की तंगी एवम नौकरी नहीं मिलने के कारण अब वह अपनी एवम अपने परिवार की गुजारा के लिए ऑटो चलाने लगा था। 

             अनिकेत से मिलकर एवम उससे बात करते ही रूपाली के मन में आशीष एवम उसके दोस्तों को सबक सिखाने के लिए तुरंत एक योजना बन जाती है। 

             रूपाली अपनी पुरी बात अनिकेत को बताती है। उसकी बात सुनते ही वह तुरंत उसे मदद करने को तैयार हो जाता है। कम से कम इसी बहाने अब उसे अपने प्यार का इजहार करने का मौका तो मिलने जा रहा था। 

             दोनों गुड़गांव में ही अलग अलग कमरा भाड़े पर लेकर पास में ही रहने लगते हैं।

              रूपाली अब अपना नाम बदलकर पांचाली रख लेती है। योजना अनुसार वह अब पांच अलग अलग रूपों में आशीष एवम उसके अन्य सभी दोस्तों को अपने प्यार के जाल में फंसाने का चक्रव्यूह रचने लगती है।

             वह महेश के यहां नौकरानी बनकर उसे अपने हुस्न के जाल में फंसाती है। वह तुरंत पांचाली का लट्ठू हो जाता है।

             दिनेश के ऑफिस में नौकरी करने के बहाने उसे भी अपने प्यार के झूठी जाल में फंसा लेती है। वह भी पांचाली का दीवाना हो जाता है।

             पवन को कस्टमर बनकर, उसके दुकान में साड़ी खरीदने के बहाने आकर उसे भी अपने प्यार के जाल में फांसती है। पवन भी पांचाली के प्यार में खो जाता है।

             थाने में एफआईआर लिखवाने के बहाने आकर इंस्पेक्टर राजीव को भी अपने प्यार के जाल में फंसा लेती है। उसे तो पांचाली को पाकर मुंह मांगा इनाम मिल जाता है।

             रूपाली एक हाई प्रोफाइल मॉडल बनकर पहले आशीष की बहन रागिनी से दोस्ती करती है, उसके बाद उसी के सहयोग से उसके भाई को भी अपने झूठी प्यार के बंधन में बांध लेती है। आशीष रूपाली के बदले हुए रूप के कारण पहचान नहीं पाता है, वह भी उसके साथ प्यार के हसीन सपने में खो जाता है।

            पांचों दोस्त अपने प्रण के कारण अभी तक तो कुंवारे एवम हुस्न के प्यासे थे ही अचानक सभी अपने जिदंगी में पांचाली का प्यार पाकर खिल उठते हैं। सभी के शांत लहरों में अचानक उबाल आने लगता है।

            इस बार अपने प्यार के बारे में कोई किसी को कुछ नहीं बताता है। शादी नहीं होने के कारण वैसे ही सभी को अब जिंदगी भर कुंवारे ही रहने का डर सताने लगा था। अब तो आस पास के लोग भी ताने मारने लगे थे। 

            पांचाली बनी रूपाली पांचों को अपने प्यार के झूठी जाल में ऐसे फंसाती है कि सभी अपना सब कुछ उसपर लुटाने को तैयार हो जाते हैं। पांचाली सभी से खूब पैसे भी लुटती  है। वह शादी के बाद दोस्तों के साथ सोने वाली शर्त भी मान लेती है। 

           सभी पांचों दोस्त अभी तक एक दुसरे से अपने प्यार और अब शादी वाली बात भी छिपाए हुए ही थे 

           किसी को अभी तक जरा भी शक नहीं हुआ था कि उन पांचों से प्यार का नाटक करने वाली कोई पांच अलग अलग लड़की नहीं, बल्कि एक ही लड़की थी रूपाली। जो पांचाली बन सभी को मूर्ख बनाते हुए लूट रही थी। 

           रूपाली के कदम से कदम मिलाकर अनिकेत भी अपने छड्म रूप में साथ चल रहा था।

           समय बीतता रहता है। जब रूपाली सभी को लुटकर कंगाल बना देती है, तो अचानक वह सभी पांचों दोस्तों को शादी करने के लिए एक ही दिन एक ही समाय में पास के ही एक पहाड़ी मंदिर में बुलाती है। 

           सभी बिना किसी को बताए मन में अभी से ही सुहागरात की कल्पना संजोए बन ठनकर मंदिर की ओर चल पड़ते हैं। सभी के सूखते यौवन के दरखतों में बसंत की फुहार अभी से ही उठने लगी थी। मगर सभी के मन में यह डर सता रहा था कि कहीं किसी को पता चल गया तो बीच में ही आकर कहीं सारा खेला खत्म न कर दे। फिर उसके सुहागरात का देखा संजोया अपना टूट जाता। यही सोचकर अभी तक सभी चुप चाप सारा काम कर रहे थे, और अभी भी सभी शादी करने के लिए मंदिर की ओर जा रहे थे। 

            रूपाली के बताए जगह पर जब सभी पहुंचते हैं तो सभी अपने सामने पांच नहीं बल्कि एक ही लड़की को देख दंग रह जाते हैं। सभी रूपाली के खेल एवम चक्रव्यूह में फंस चुके थे। 

           अनिकेत भी वहां रूपाली के साथ रहता है। आशीष उसे देखते ही पहचान लेता है। 

           सभी रूपाली को उसके करनी पर डांटते, मगर तभी वही सभी को उसके घिनौनी एवम स्त्री को सिर्फ भोग विलास की वस्तु समझने वाली सोच के लिए खूब खरी खोटी सुनाने लगती है। 

             रूपाली की पुरी बात को सुनकर सभी का सिर शर्म से झुक जाता है। आज पहली बार सभी को अपने लिए हुए प्रण पर पश्चाताप हो रहा था। 

          वह पांचों दोस्तों को प्यार के बीच मझधार में वही छोड़कर अनिकेत के साथ चली जाती है।

              पांचाली के कारण देर से ही सही मगर सभी पांचों दोस्तों को अपने गलत सोच एवम निर्णय के कारण आज बहुत ग्लानी महसूस हो रहा था।



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