किसी मरे हुए किन्नर को क्यों नहीं देखना चाहिए|

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किसी मरे हुए किन्नर को क्यों नहीं देखना चाहिए|


एक समुदाय जो समाज में ही पैदा होता है लेकिन एक समय के बाद समाज से अलग हो जाता है। इसके पीछे लोगों का तर्क है कि हमारे समाज का अस्तित्व केवल महिला और पुरुष है, यहां किसी तीसरे लिंग के लिए कोई जगह नहीं है। यही वजह है कि लोगों में इस आतंकी को लेकर उत्सुकता बनी रहती है। इस समाज से जुड़े रीति-रिवाजों को हर कोई जानना चाहता है तो आइए आज हम आपको बताते हैं समाज से जुड़े रोचक पहलुओं का परिचय।

किन्नरों को समाज में जन्म लेने के बाद भी समाज से निकाल दिया जाता है। ऐसे में वे अपनी नई दुनिया बसाने को मजबूर नहीं हैं। यूं तो इनकी दुनिया भी आम इंसानों की तरह ही है, लेकिन इनका चीनी का अंदाज आम इंसानों से कुछ अलग है।
अलग हो जाता है। नए किन्नर का स्वागत किन्नर समाज में नए किन्नर का जोरदार स्वागत होता है।

एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है जिसमें नाचना, गाना, खाना-पीना सब कुछ होता है। अगर समाज का हिस्सा बनने के लिए कई रीति-रिवाजों से गुजरना पड़ता है, नहीं। मेहमानों को साड़ी की चूड़ियों और गहनों से सजाया गया है। शुद्धिकरण के बाद उसका नाम भी रखा जाता है, इसलिए इस प्रकार किन्नर समाज में एक नए सदस्य की प्रविष्टि होती है। किन्नर समाज में गुरु-शिष्य की परंपरा शुरू हो गई है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि हर क्षेत्र के अनुसार किन्नर अलग-अलग प्रकार के होते हैं। समूह होते हैं और प्रत्येक समूह का एक मुखिया भी होता है जिसे किन्नर समाज में गुरु माँ कहा जाता है क्योंकि वह अपने समूह की नेता होती है। गुरु के निर्देश पर ही किन्नर समुदाय का कार्य इस प्रकार बांटा गया है कि समुदाय का गुरु जन्मजात किन्नर होता है। किन्नरों के साथ भी ऐसा होता है। विवाह अधिक लोगों का मानना है कि किन्नर का विवाह भला कैसे हो सकता है। लेकिन अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो यह पूरी तरह गलत है। दरअसल किन्नर समाज में भी शादियां धूमधाम से की जाती हैं।

आम इंसानों की तरह तमाम रीति-रिवाजों के साथ। किन्नरों की शादी ऐसा होता है जिसमें आराध्य देव आर्य वंशी का किन्नर का विवाह होता है, लेकिन यह विवाह सिर्फ एक दिन के लिए नहीं होता है। इसके पीछे मान्यता है कि किन्नरों के देवता रावण की मृत्यु के साथ ही विवाह के अगले ही दिन उनका वैवाहिक जीवन भी समाप्त हो जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि रावण को किन्नरों का देवता क्यों माना जाता है और क्यों? सिर्फ एक लड़की की शादी, यह मान्यता महाभारत से जुड़ी है।

महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने मां काली की पूजा की थी और इस पूजा में एक राजकुमार की बलि दी जानी थी, लेकिन उनमें से कोई भी बलि के लिए आगे नहीं आया। अंत में, अरावन इस बलिदान के लिए तैयार हो गया, लेकिन उसकी एक शर्त थी। यानी कुर्बानी से पहले वह शादी करना चाहता है। यानी बिना शादी किए बोली नहीं लगाएंगे। ऐसे में पांडवों के सामने एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई कि आखिर कॉर्नर एक दिन के लिए रावण से शादी करेगा। अंत में भगवान कृष्ण ने मोहिनी का रूप धारण किया और आराम से विवाह कर लिया। हे वन की बलि दी गई और अब उनकी मृत्यु के बाद, कृष्ण का रूप मोहिनी विधवा हो गई और उसने यह काबिल भी किया।

इस घटना को याद करते हुए किन्नर रावण को अपना भगवान मानते हैं और उससे एक दिन के लिए शादी कर लेते हैं और अगले दिन विधवा हो जाते हैं। अगर आप शादी से जुड़े 10 किन्नरों को देखना चाहते हैं तो तमिलनाडु के विल्लुपुरम जिले में देख सकते हैं। ग्राम कुआं में महाभारत काल के रावण का मंदिर है। यहां हर साल तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा के दिन हजारों लोग शामिल होते हैं। यहां किन्नर शादियां बड़े पैमाने पर आयोजित की जाती हैं। यह त्यौहार लगभग 18 दिनों तक चलता है जिसमें 17 मई को किन्नरों की शादी होती है और पुजारी किन्नरों को मंगलसूत्र पहनाते हैं।

शादी के अगले दिन, रावण की मूर्ति को शहर भर में ले जाया जाता है और बाद में इसे तोड़ दिया जाता है। कहा जाता है कि अरावन की मृत्यु के बाद जिस किन्नर का विवाह हो जाता है, उसे सारे श्रृंगार उतारकर विधवा की तरह विलाप करना पड़ता है और बाद में वह एक सामान्य किन्नर की तरह रहता है। यह कहा जाता है। किन्नरों की यह रस्म बहुत प्यारी होती है क्योंकि उनका मानना है कि वे अपने जीवन में कम से कम एक बार शादी जरूर करते हैं। यह कैसे होता है।

किन्नरों के अंतिम संस्कार के बारे में कहा जाता है कि किन्नरों के गुरु को पहले ही शिष्य की मृत्यु का एहसास हो जाता है। क्या आप जानते हैं कि किन्नरों का अंतिम संस्कार रात में क्यों किया जाता है और उनका अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है। किन्नर की मौत के बाद उसके शरीर पर किसी भी तरह की कोई चीज नहीं बची है। इसके पीछे किन्नर समाज का कहना है कि ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि उसकी आत्मा पूरी तरह मुक्त हो जाए। किसी भी प्रकार का बंधन नहीं होता है, किन्नर का अंतिम संस्कार रात के समय निकाला जाता है ताकि कोई उसे देख न सके। लोगों का मानना है कि अगर कोई गलती से किसी किन्नर के अंतिम संस्कार की बारात देख लेता है तो अगले जन्म में उसका जन्म किन्नर के रूप में होता है।

अंतिम संस्कार से पहले सभी को जूते-चप्पल से पीटा जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से किन्नर के सभी पाप प्रायश्चित हो जाते हैं। इस समाज में मृत्यु के बाद शोक नहीं मनाया जाता क्योंकि वे मानते हैं। कि मृतक किन्नर को नारकीय जीवन से मुक्ति मिल गई। इस खंड में भी सामान्य मनुष्यों की तरह पूजा-अर्चना की जाती है। किन्नर बहुचर माता की पूजा करते हैं। दुआ कीजिए कि अगले जन्म में वह किन्नर के रूप में पैदा न हो, किन्नरों को जलाने के बजाय, आपने देखा कि इस सदी के तरीके और रीति-रिवाज आम आदमी के समाज से कितने अलग हैं।

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